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हे मूर्ख । वेद, सिद्धान्त और पुराणो को समझते हुए (व्यक्तियो) के लिए (इसमे) (कोई) सन्देह नही (है) (कि) जब आनन्द से कोई मरा (है), तव हे मूर्ख । (वे लोग) (उमको ही) सिद्ध (सफल) कहते है ।
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जिसके द्वारा परमार्थ (को) निज देह से भिन्न नही जाना गया (है), वह अघा (है)। (वह) किस प्रकार दूसरे अवो के लिए मार्ग दिखलायेगा?
हे योगी! तू तेरी प्रात्मा को देह से भिन्न ध्यान कर। यदि (तू) देह को ही आत्मा मानता है (तो) (तू) निर्वाण (परम शान्ति) कभी नही पायेगा।
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छह रसो द्वारा, पाच रूपो द्वारा (तथा) आसक्ति के कोलाहल के द्वारा जिसका चित्त (इस) पृथ्वीतल पर नही रगा गया (है), हे योगी । (तू) उसको ही मित्र बना। .
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सब ही विकल्पो को तोडकर (तू) आत्मा मे ही मन को धारण कर । वहाँ (ही) (तू)निरन्तर सुख पायेगा (और) शीघ्र ससार (मानसिक तनाव) को पार कर जायेगा।
पुण्य से वैभव होता है। वैभव से मद (होता है) । मद से बुद्धि की मूर्छा (होती है) और बुद्धि की मूर्छा से नरक (होता है) । वह पुण्य मेरे लिए न होवे।
हे जिनेन्द्र (तुम) तब तक ही नमस्कार किए गए हो, जब तक (तुम) देह के अन्दर नही समझ गए हो । यदि (तुम) देह के अन्दर जान लिए गए (हो) तो किसके द्वारा किसको नमस्कार किया जाए ?
शुभ-अशुभ को उत्पन्न करनेवाला कर्म न करते हुए (मी) सकल्प-विकल्प तब तक (रहते हैं), जब तक हृदय मे प्रात्म-स्वरूप की सिद्धि स्फुरित नही होती है।
पाहुडदोहा चयनिका ]
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