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22 देहहि उब्भउ जरमरणु देहहि वण्ण विचित्त 1 देहहो रोया जाणि तुहुं देहहि लिंगई मित्त ॥
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कम्मह केरउ भावडउ जइ श्रप्पाण भणेहि । तो वि ण पावहि परमपउ पुणु संसारु भमेहि ॥
अप्पा मिल्लिवि गारणमउ अवरु परायउ भाउ 1 सो छंडेविणु जीव तुहुं भार्वाहि सुद्धसहाउ ॥
बुज्झहु बुज्झहु जिणु भरगइ को बुज्झउ हलि अण्णु । अप्पा देहहं गारणमउ छुडु बुज्भियउ विभिष्णु ॥
पंच वलद्द र रक्खियइं गंदरणवण ग गनो सि । अप्पु ण जाणिउ ण वि परु वि एमइ पव्वइनो सि ॥
मणु जाणइ उवएसडउ जह सोंवेइ श्रचतु । श्रचित्तहो चित्तु जो मेलवइ सो पुणु होइ णिचितु ॥
मिल्लहु मिल्लहु मोक्कलउ जहि भावइ तह जाउ । सिद्धिमहापुरि पइसरउ मा करि हरिसु विसाउ ||
अम्मिए जो पर सो जि परु परु अप्पाण ण होइ । हउ उज्झउ सो उव्वरइ वलिवि ण जोवइ तो इ ॥
[ पाहुडदोहा चयनिका