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क्रीडा ही करता है. उसमे आसक्त नहीं होता है (61)। ध्यान की शक्ति से व्यक्ति हर्ष और विपाद से परे हो जाता है (28)। ऐसा व्यक्ति ही समतावान कहलाता है । साधना की पूर्णता समतावान बनने मे है (1)
चयनिका के उपर्युक्त विषय से स्पष्ट है कि पाहुडदोहा मे आसक्ति के घर से निकलने के लिए मार्ग प्रशस्त किया गया है। इसी विशेषता से प्रभावित होकर यह चयन पाठको के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हर्ष का अनुभव हो रहा है। दोहो के हिन्दी अनुवाद को मूलानुगामी बनाने का प्रयास किया गया है । यह दृष्टि रही है कि अनुवाद पढने से ही शब्दो की विभक्तियॉ एव उनके अर्थ समझ मे आ जावे | अनुवाद को प्रवाहमय बनाने की भी इच्छा रहो है । कहा तक सफलता मिली है इसको तो पाठक ही बता सकेंगे । अनुवाद के अतिरिक्त दोहो का व्याकरणिक विश्लेषण व शब्दार्थ भी प्रस्तुत किया गया है। इस विश्लेषण मे जिन सकेतो का प्रयोग किया गया है उनको सकेत-सूची मे देखकर समझा जा सकता है। यह प्राशा की जाती है कि इससे अपभ्रश को व्यवस्थितरूप में सीखने में सहायता मिलेगी तथा व्याकरण के विविध नियम सहज में ही सीखे जा सकेंगे। यह सर्वविदित है कि किसी भी भाषा को सीखने के लिए व्याकरण का ज्ञान अत्यावश्यक है। प्रस्तुत दोहे, उनके व्याकरणिक विश्लेषण एव शब्दार्थ से व्याकरण के साथ-साथ शब्दो के प्रयोग भी सीखने में मदद मिलेगी। शब्दो की व्याकरण और उनका अर्थपूर्ण प्रयोग दोनो ही भाषा सीखने के आधार होते है। अनुवाद एव व्याकरणिक विश्लेषण जैसा भी बन पाया है पाठको के समक्ष है । पाठको के सुझाव मेरे लिए बहुत ही काम के होगे। आभार ___पाहुडदोहा चयनिका के लिए हमने डा हीरालाल जैन द्वारा सम्पादित पाहडदोहा का उपयोग किया है। इसके लिए मैं स्व डा. हीरालाल जैन के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता है। पाहुडदोहा का यह सस्करण कारजा (वरार) से सन् 1933 (विक्रम स 1990) मे प्रकाशित हुआ है।
1 विन्नार के लिए अप्टपाहुइ चयनिका की प्रस्तावना देखें।
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