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कुन्दकुन्द, कवि योगीन्दु जैसे आत्मसाधको के क्रम मे ही मुनि रामसिंह की इस रचना मे आत्मानुभव की महत्ता, धर्म के नाम पर फैले क्रियाकाड, अन्धविश्वासो की निस्मारता / योयेपन/भर्त्सना के स्वर मुखरित है । प्रस्तुत रचना मे उन्होने अपने गूढ ग्रात्मिक अनुभवो को सर्वजन हिताय निवद्ध किया है । उन्होने कहा - आत्मशुद्धि के लिए आवश्यक्ता है केवल राग-द्वेप-मोह की प्रवृत्तियो को रोकने और अपने-पराये / स्व-पर / जड-चेतन की पहचान की
अम्मिए जो परु सो जि परु परु अप्पाण रग होइ । हउ उज्भउ सो उन्चरइ वलिवि रंग जोवइ तोइ ॥
- ग्रहो । जो पर है वह पर है । परवस्तु आत्मा नही होती है । मैं जला दिया जाता हूँ, (वह) आत्मा शेष रहता है, तव ( भी वह ) मुडकर भी नही देखता ।
पापरहूँ मे
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-- श्रात्मा और पर का मिलाप ( कभी ) नही होता ।
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इसलिए
जोइय भिण्ड काय तु देह
प्राणु ।
तू तेरी आत्मा को देह से
भिन्न ध्यान कर |
हे योगी उन्होने कहा—–श्रात्मज्ञान मे रहित क्रियाकाड करणरहित भूसा कूटने के समान है ।
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पाहुडदोहा के इन्ही भावो से श्रोतप्रोत 222 दोहो मे से विशिष्ट, सरल, सर्वोपयोगी 92 दोहो का सकलन है यह 'पाहुडदोहा चयनिका । इनका चयन सकलन, विश्लेपण किया है डॉ कमलचन्द जी मोगारणी, मेवानिवृत्त प्रोफेसर, दर्शनविभाग, सुखाडिया विश्वविद्यालय, उदयपुर, ने । 'चयनिका' ग्रन्थ के मूलहार्द को मक्षिप्त रूप मे प्रस्तुत करने की डॉ सोगारणी की विशिष्ट शैली, एक अलग पहचान है । इस चयनिका मे मूलदोहा, उसका व्याकरणिक विश्लेषण और उसी पर आधारित हिन्दी अर्थ व शब्दार्थ दिए गए हैं जिससे पाठक अपभ्रंश व्याकरण और रचनाकार की मौलिकता दोनो को ही समझ मके । व्याकरणिक विश्लेषण की यह पद्धति डॉ मोगारणी की मौलिक देन है ।
[ पाहुडदोहा चयनिका