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प्रकाशकीय
विश्व मे दो ही प्रकार के तत्व हैं - ( 1 ) चेतन और (2) जड । चेतन तत्व है आत्मा / जीव, शेष समस्त पदार्थ / वस्तुए जड हैं । चेतन और जड दोनो स्वरूपत विल्कुल भिन्न, पृथक्-पृथक् तत्व हैं, किन्तु चेतन जड पदार्थो से अपने श्रापको जोडे रखता है, बांधे रखता है, यहा तक कि उसको अपना ही समझने लगता है । इस प्रकार 'पर' के प्रति लगाव / अपनत्व / ममत्व / मोह से दुख उत्पन्न होता है । पर-पदार्थ को अपना समझने की भ्राति/ भ्रातधारणा ही दुख का मूल है ।
जगत् का प्रत्येक प्राणी सुख चाहता है और दुख से डरता है । इसलिए तीर्थंकर ऋषि-मुनि त्यागी तपस्वी अपने अनुभवो के आधार पर प्राणियो को समझाते रहे हैं - वास्तविक सुख 'पर' से अपने को अलग पहचानने-समझने, जानने-मानने मे है, यह ही आत्मज्ञान है । इन्द्रिय-सुख शाश्वत नही है, सच्चा सुख इन्द्रियो पर विजय और आत्मध्यान मे ही मिलता है, यह सुख चिरस्थायी और कल्याणकारी है । आत्मसाधक आचार्यों ने उपभोग की अपेक्षा त्याग और कर्मकाण्ड की अपेक्षा स्वानुभव का माहात्म्य बताया है । सभी धर्मों मे समय-समय पर, अलग-अलग रूपो मे, अनेक भाषात्रो मे, नई-नई शब्दावलियो मे इन्ही तथ्यो की घोषणा की गई है ।
दमवी शताब्दी के कवि मुनि रामसिंह ने तत्कालीन लोकभापा अपभ्रंश मे पाहुड - दोहा की रचना की । पाहुड उपहार भेंट, पाहुडदोहा = दोहो का उपहार | सामान्यजन के लाभार्थं उन्होने यह 'दोहो का उपहार' दिया । पाहुडदोहा उनकी एकमात्र उपलब्ध कृति है । मुनि रामसिंह राजस्थान प्रान्त के कवि थे । डॉ हीरालाल जैन ने पाहुडदोहा की प्रस्तावना मे लिखा है - " ग्रन्थ मे 'करहाऊंड' की उपमा बहुत
ई है तथा भाषा मे मी 'राजस्थानी - हिन्दी' के प्राचीन मुहावरे दिखाई देते हैं । इससे श्रनुमान होता है कि ग्रन्थकार राजपुताना के थे ।" मुनि रामसिंह आध्यात्मिक रहस्यवादी धारा के प्रमुख कवियो मे से एक हैं । वे साम्प्रदायिकता, सकीर्ण विचारचारा, वाह्याडम्बर की अपेक्षा आत्मज्ञान के प्रवल समर्थक व परममाधक हैं | आचार्य
पाहुडदोहा चयनिका ]
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