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________________ १२ पाहुड - दोहा कासु समाहि कर को अचउँ । छोपु अछोपु भणित्रि को पंच ॥ to सहि कलह केण सम्माणरें । जहिं जहिं जोवउँ तहिं अप्पाणउ ॥ १३९ ॥ जंइ मणि कोहु करिवि कलहीजड़ । तो अहिसेउ णिरंजणुं कीजइ ॥ जहिं जहिं जोयउ तहिं णउ को विउ । हेरं ण वि कासु विमज्यु वि को विउ ॥ १४० ॥ मिओ सि ताम जिणवर जाम ण मुणिंओ सि देहमझम्मि | जइ मुणिउ देह मज्झम्मि ता केण णवज्जए कस्स ॥ १४१ ॥ तो कप्पवियप्पा कम्मं अकुणंतु सुंदासुहाजणयं । अप्पसरूवासिद्धी नाम ण हियए परिफुर ॥ १४२ ॥ महिलउ गहिलउ जणु भणइ गहिलउ मं करि खोहु । सिद्धिमहापुर पइसरई उप्पाडेचिणु मोहु ॥ १४३ ॥ १. में यह पंचि नहीं है. २ द, जं. ३ क. णिरंजण. 2 क. मुणसि. ५ के. मल्यं को नवइ नविजय कस्स. ६ द. में यह या नहीं. ७ क. सुहसुजणयं । ८ क हो.
SR No.010430
Book TitlePahuda Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1934
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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