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देशीभाषा और अपभ्रंश
३३ प्रमाणों पर से सावयधम्म को हम विक्रम संवत् ९९० अर्थात् ईस्वी ९३३ के लगभग बना हुआ सिद्ध कर चुके है। अतः अनुमान होता है कि पाहुड दोहा सन् ९३३ और ११०० के बीच में किसी समय अर्थात् सन् १००० ईस्त्री के लगभग रचा गया है।
८. देशीभापा और अपभ्रंश प्रस्तुत ग्रंथ की भापा वही है जिसका परिचय सावयधम्म दोहा की भूमिका में दिया जा चुका है। उसके सम्बन्ध में फ्रांस के सुप्रसिद्ध विद्वान् डा. जुले व्लॉक ने मुझे भेजे हुए अपने एक अनुग्रहपूर्ण पत्र में एक शंका उपस्थित की है। मैने सावयधम्म की भापा का परिचय देते हुए कीर्तिलता का एक पद्य उद्धृत किया है जिसके दो अन्तिम चरण हैं:
देसिल वअना सव जन मिहा।
तँ तैसन जम्पो अवहट्ठा ।।
मैने इस पद्य का कोई अनुवाद नहीं दिया किन्तु इस बात को परोक्षरूप से स्वीकार कर लिया था कि यहां देसिल वक्षना' और ' अवहट्टा' का एक ही भाषा से तात्पर्य है । डा. ब्लॉक को इस समानार्थकता में शंका है। उन्होंने अपनी शंका का कारण, परोक्ष रूप से, यह प्रगट किया है कि उक्त चरणों के * ' As regards the identification Desi=Apabhransa, I foel i, some doubts'. Lotter dated. 30-11-32.