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टिप्पणी
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२१७. रत्ता गउपावियई-गोपायिते रक्ताः। आप्टे कृत संस्कृत अंग्रेजी कोष में गोपयति का एक अर्थ to shine; to speak भी दिया हुआ है इसी पर से अनुवाद में अपनी श्लाघा करने का अर्थ लिया गया है । उसी प्रकार 'गुप्यति' का अर्थ उक्त कोष में to be confused or disturbed दिया गया है, उसी पर से गुप्पंत गुप्यन्तः का अर्थ ' भ्रान्त हुए ' किया गया है। इस पक्ति का अर्थ यों भी किया जा सकता है जो अपनी रक्षा में रत हैं वे छिपे छिपे भ्रमण करते फिरते हैं । किन्तु पहला अर्थ इससे अच्छा है।
२१८. इस श्लोक का तात्पर्य यह है कि ज्ञान ही सब जीवन का सार है, क्योंके उससे ही कर्मों का नाश होकर परम पद की प्राप्ति होती है। आहार शरीर के पोषण के लिये किया जाता है और शरीर का उपयोग ज्ञान सम्पादन में है । इस प्रकार आहार और शरीर भी अन्ततः ज्ञान के ही लिये हैं।
२१९-२२०. प्रश्न यह है कि प्रकृति में जो काल, वायु, सूर्य और चन्द्र ये चार शक्तियां दिखाई देती हैं उनमें प्रधान कौन है ? किस शक्ति द्वारा इनका विनाश होता है ? उत्तर है कि सूर्य, चन्द्र और पवन का कार्य काल के ऊपर निर्भर है। काल ही के द्वारा इनका प्रलय होता है। जैन सिद्धान्तानुसार सब द्रव्यों में परिवर्तन करनेवाला कालद्रव्य ही है । यथा