________________
पाहुद-दोहा द. प्रति से इस प्रति की मुख्य विशेषताये ये हैं
१. इसमें दोहा नं. ६४ नहीं है, तथा दोहा ७९ और ११२ अधिक हैं। नं. ७ दो दोहों पर दिया गया है, और इस तरह से अन्तिम दोहे पर नं. २२० आया है यद्यपि ययार्यतः दोहों की संख्या २२१ हैं।
२. कुछ दोहों का क्रम विपरीत है नमे ६ और ७, २० और २१, २२ बोर २३.
३. लिपिकार की असावधानी के कारण कहीं कहीं दोहों के एक, दो या तीन चरण छूट गये हैं। उदाहरणार्थ देखिये दोहा १३९ ६ १६६ की पाद-टिप्पणियां ।
१.ण के स्थान पर न का प्रयोग बहुत हुआ है किन्तु यह पाठभेद देने की हमने आवश्यकता नही समझी।
.. इसके पाठों में कुछ संयुजाकर देले पाये जाते हैं जो हेमचन्द्र ने स्वीकार किया है किन्तु प्रान्त अपना ग्रंथों में कम पाये जाते है-जैसे लिंगाप्रवण, दान्वय, प्रबड़। ये पाट अन्य पाउन्नरों के समान पाद-हिन्लनियों में दिया हैं।
पाठ-संशोधन का पूरा कार्य इन्ही दाथियों के आधार पर किया गया है जिनमें से भी एक पोवी काली दुर्दशा है। मन्त्र किसं शिली दोई के संशोधन में मुझे स्वयं पूर्ण संतार