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संशोधन सामग्री
अन्त-इति श्री योगेन्द्रदेवविरचित दोहापाहुडं नाम ग्रंथ समाप्त।
गुटके में कहीं संवत् आदि का उल्लेख नहीं मिला, इससे यह कहना कठिन है कि यह प्रति कितनी पुरानी है। श्रीयुक्त उपाध्ये ने इसे लगभग दो सौ वर्ष पुराना अनुमान किया है । मेरा भी यही अनुमान है । यद्यपि गुटके की हालत देखकर कोई इसे और भी अधिक पुराना अनुमान करेगा, किन्तु विचार पूर्वक अवलोकन से ज्ञात होता है कि गुटके की यह दुरवस्था उतनी काल के प्रभाव से नहीं जितनी असावधानी से रखे जाने के कारण हुई है । सम्भवतः यह गुटका किसी श्रावक के घर में रहा है, वह पठन पाठन के लिये हाथों हाथ आता जाता रहा है, तथा खुला रखा रहने के कारण उसे सीड और दीमक का परीपह भी सहना पड़ा है।
इस गुटके की बीच बीच में कुछ पंक्तियां लाल स्याही: से लिखी गई हैं। यह स्याही कई जगह बुरी तरह उड़ गई है। बीच बीच में तो पन्ने के पन्ने अपाठ्य हो गये हैं। इस कारण इसके पाठों का मिलान करने में बड़ी कठिनाई का अनुभव हुआ । पाहुष्ट दोहा की और अधिक प्रतियां नहीं मिल सकी इस कारण मैने इसके पाठों को पढ़ने तथा उन्हे प्रस्तुत संस्करण में देने का भरसक प्रयत्न किया है । तथापि उपर्युक्त कठिनाई के कारण कुछ स्थानों पर इसके पाठ जानने में मैं असफल ही रहा, जैसा कि संस्करण की पाद-टिप्पणियों से पाठकों को ज्ञात हो जावेगा।