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________________ (१) महावीर विवाहलो गाथा ३२ आदि-मिद्धि रमणी० । (२) अजितनाथ जपमाल चित्र स्तोत्र श्लोक ३७ स० १४८६, इन्द्रपुरी ( परिशिष्ट मे प्रकाशित ) । (३) जैसलमेर २४ जिन स्तवन गाथा २५ आदि-जल केवल । (४) पु जोर वीनति गाथा १६ (महा हरम०) । (५) नेमिनाथ वीनति गाथा २० (तिहुअण जण०) । (६) तलवाडा शान्ति स्तवन गाथा १५ श्री मरूदेश मझारि०) । (७ रोहिणि स्तवन गाथा ४ (जय रोहिणी वल्लह) स० १४६७ । (८) नेमिनाथ ज्ञानपचमी स्त० गाया ११ (वदामिनेमि नाह०) (अन्य प्रति मे गा० १३ परिशिष्ट में प्र० । (१०) शान्तिनाथ स्तुति गाथा ४ (वरसोला मलागुन्दउडा खजूर) इम ११ गिरनार पैत्यपरियाही १२ पार्श्व एतदत प्रयश्ति पर माधुसुन्दर रचित टीका भी हमविजयजी ज्ञान भण्डार में प्राप्त है। इनके अतिरिक्त हमारे मग्रह मे "अन्यार्था स्तुति एवम्” १४ 'चतारि अट्ठ दण' गाथा के छ अर्थों वाली सात गाथाएं भी लिखी हुयी मिली हैं । इनकी दीर्घायु को देखते हुए और भी बहुत सी रचनाएँ मिलनी चाहिए। आपके लिखवाई हुयी स्वर्णाक्षरी कल्पसूत्र की एक महत्वपूर्ण प्रति के प्रशस्ति पत्र हमारे सत्रह मे है। इसीतरह एक सचित्र कल्पसूत्र की २६ श्लोफो की प्रगस्ति भी हमारे मह मे है, इन सब मे आपके वशजो का काफी विवरण पाया जाता है। अर्थात् आरके वश वाले वहुत धनाढ्य व्यापारी रहे है, जिन्होने जैनमन्दिर, मूर्तियां, पादुकाएं, ग्रन्थलेखन आदि धार्मिक, कार्यों मे प्रचुर द्रव्य व्यय किया था। अनेक देशो और ग्राम नगरो में आपने विहार करके धर्म प्रचार और साहित्य साधना की थी। शतृञ्जय गिरनार आदि अनेक तीर्थों की सघ सहित यात्रा की थी। वीरमपुर, जैमलमेर, पु जीर, तलवाडा, दिल्ली आदि अनेक न्यानो मे बापने चौमासे किये थे, जिनका उल्लेख आपकी कृतियो मे और समकालीन अन्य रचनाओं में प्राप्त हैं । म प मे आप पन्द्रहवी शती के उत्तरार्ध
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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