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१२६ ] नवम सर्ग
[ नेमिनाथमहाकाव्यम् हे कुमार ! चपलनयनी युवतियो से विवाह करो और उनके साथ भोगो को इस प्रकार भोगो जैसे देवता अप्सराओ के साथ ॥१२॥
जो रूप और सौन्दर्य से सम्पन्न, शील रूपी आभूषण को धारण करने वाली, लावण्यामृत बहाने वाले घने तथा कठोर स्तनो से युक्त, स्वर्णकमल के . आन्तरिक भाग के समान गोरी, मृगनयनी कुलीन युवती को नही भोगते, वे ' निश्चय ही विधाता द्वारा ठगे गये हैं ।।१३-१४॥
___संसार मे जो सारपूर्ण है, वह निश्चय ही ये मदमाती युवतियाँ हैं । पदि वे तुझे सारहीन प्रतीत होती हैं, तो तू गधे के समान मूर्ख है ॥१५॥
___ नेमि ! वास्तविकता यह है, फिर भी हम तुम्हारी बुद्धि (विचारवारा) को नही जानती या तुम सचमुच सिद्धि रूपी स्त्री के समागम के इच्छुक हो ॥१६॥
हे यादव ! यह निश्चित है कि मोक्षावस्था मे भी सुख ही भोगा जाता है । वह यदि यही (ससार मे) मिल जाए, तो बताओ उसमे (मोक्ष के सुख मे) मया विशेषता है ? ॥१७॥
भाभियो की ये विवेकहीन वाते सुनकर जगत्प्रभु ने कुछ हस कर निपुणता से यह कहा ॥१८|
अरी ! तुम मन्दमति हो । तुम वेवारी वास्तविकता को नही जानती अथवा कामान्य व्यक्तियो को वास्तविकता का ज्ञान कहाँ हो सकता है ? ॥१६॥
जो परम तत्त्व को नहीं जानता, वही वैषयिक सुख की प्रश सा करता है। जिसने पियाल का फल नहीं देखा, वहीं पकी निंबोली को मीठा , कहता है ॥२०॥
अथवा जिसने जो देखा है, वह उसी की सराहना करता है । इसीलिये केटनी नीव को ही मीठा समझती है ॥२१॥
कहां सामान्य वस्तुओ से वना लड्डू और कहां घी का लड्डू ? यह । विषयो का सुख कहां और चिदानन्द से उत्पन्न सुख कहाँ ? ॥२२॥