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चतुर्थ सर्ग
तत्पश्चात् समस्त दिक्कुमारियो के आसन इस प्रकार एक साथ हिलने । लगे जैसे वायु से प्रताडित वृक्ष हर जगह हिलने लगते हैं ॥१॥
तव उन्हे अवधिज्ञान के प्रयोग से प्रभु का जन्म ज्ञात हुआ जैसे रानियों गुप्तचर भेज कर देश का समाचार जान लेती हैं ॥२॥
'इसके बाद आठ दिक्कुमारियां ऊख़लोक से शिवा के प्रसूतिगृह मे आई जैसे भवरियां वृक्ष से कमल पर आती हैं । हारो रूपी पुष्पावलियो से सुशोभित, स्थूल स्तनो रूपी फलो से युक्त तथा रेशमी वस्त्रो रूपी पत्तो वाली वे गतिशील (चलती-फिरती) काम-लताओं के समान प्रतीत होती थी । अचानक हर्ष से उनकी आंखे फैल गयी थी, वे मालायो से भूपित थी, उन्होने उज्ज्वल वस्त्र पहन रखे थे और वे नीतिज्ञ देवताओ के योग्य थी । उन्होने कानो की कान्ति से परिपूर्ण मणियो के कुण्डल धारण किये हुए थे, जो उनके म को देखने के लिये एक-साथ आए सूर्य और चन्द्रमा के समान प्रतीत होते थे । वे दिक्कुमारियां होती हुई भी रस मे लीन थीं, विलासी होती हुई भी भ्रान्ति से रहित घी, सुन्दर होती हई भी कुटिल नही थी और अल कृत होती हुई भी भूषणो से रहित थी (पृथ्वी लोक मे नहीं रहती थी-न भुवि उपिता)। वे भगवान् के जन्म से उत्पन्न प्रसन्नता को, जो मानो उनके हृदयो मे नही समा रही थी, प्रभामण्डल के बहाने वाहर शरीर पर भी धारण कर रही थी ॥३.८॥
उन्होंने जगत् के स्वामी नेमिप्रभु तथा माता शियादेवी की तीन । परिक्रमाएं करके और उन्हे प्रणाम करके आनन्दपूर्वक ये प्रशसनीय वचन • कहे IIEI