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नेमिनाथ महकाव्यम् ]
तृतीय सर्ग
[ et ससार के लोगो के आनन्द तथा कल्याण के हेतु, तीनो लोको के कष्ट रूपी समुद्र के सेतु, यदुवश के ध्वज, शख चिह्नवारी प्रभु नेमिनाथ ने ससार को पवित्र कर दिया ||३६||
उस समय नरक के प्राणियो को भी क्षण भर के लिये अपूर्वं सुख प्राप्त हुआ । ममार को पवित्र करने वाला महात्माओ का जन्म किसे सुख देने वाला नही होता | ||३७|
दशो दिशाएं तुरन्त निर्मल हो गयी, समृचे जीवलोक मे प्रकाश भर गया, धूल से रहित अनुकूल पवन चलने लगी और पृथ्वी से विपत्ति एव दरिद्रता का दुख नष्ट हो गया ||३८||
तब राजाओ के शिरोमणि समुद्रविजय के भवन ने, जो फैलती हुई किरणो से युक्त शरीर वाले जिन रूपी सूर्य से सुन्दर या तथा जो मरकतमणियो और अगणित रत्नो से युक्त था, उदयाचल की शोभा को प्राप्त किया करे ||३६|
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