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नेमिनाथ चरित्र पास आया हूँ। मेरा नाम स्कन्दिल, जाति ब्राह्मण
और गोत्र गौतम है। गन्धर्वसेनाको जीतने के लिये मैं आपके निकट संगीत सीखना चाहता हूँ। दयाकर मुझे भी आप अपनी शिष्य-मण्डलीमें स्थान दीजिये !"
ब्राह्मण वेशधारी वसुदेवके यह वचन सुनकर संगीताचार्य सुग्रीवने एकवार नीचेसे ऊपरतक उसे देखा । उसका वेश देख कर उन्होंने मोटी बुद्धिसे उसे मूर्ख समझ लिया
और बड़े अनादरसे उसे अपने पास रखा। परन्तु वसुदेवने इन सब बातोंकी कोई परवाह न की । वे ग्राम्य भाषा बोल-बोल कर सारा दिन लोगोंको हँसाते । अपना प्रकृत परिचय तो उन्होंने किसीको दिया ही नहीं। सब लोग उन्हें ग्रामीण और गॅवार समझ कर सदा उनकी दिल्लगी करते और उन्हें उपेक्षा की दृष्टिसे देखते । ___ कुछ दिनोंके बाद वाद-विवादका दिन आ पहुंचा। समस्त युवकोंने उत्तमोत्तम गहने-कपड़े पहन कर सभास्थान की ओर जानेकी तैयारी की। वसुदेवके पास श्यामाका दिया हुआ केवल एकही वस्त्र था। सुग्रीवकी पत्नीको यह बात मालूम थी, इसलिये उसने वसुदेवको अपने पास