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________________ छठा परिच्छेद १२९ ही वह दासी नाराज हो गयी। उसने घुड़क कर कहा-"तुममें यह कुलक्षण है, इसीलिये तो तुम बन्धनमें पड़े हो" - वसुदेवने चौंककर पूछा:-"वन्धन कैसा ? क्या मैं किसी बन्धनमें पड़ा हूँ !" __ दासी पहले तो कुछ भयभीत हुई, किन्तु बादको वसुदेवकी बातोंमें आकर उसने महाजनोंकी शिकायतका सारा हाल उसे कह सुनाया। स्त्रियोंके हृदयमें छिपी वात अधिक समय तक रह ही कैसे सकती है ? ___ वसुदेवने उसे तो गन्ध-द्रव्य देकर विदा कर दिया। किन्तु वह स्वयं गहरी चिन्तामें पड़ गया। वह अपने मनमें कहने लगा,-'मेरे बड़े भाईको शायद यह सन्देह करनेके लिये ही नगरमें घुमा करता हूँ। और इसीलिये उन्होंने मुझे बाहर न जानेकी सलाह दी है। यह बहुत ही बुरी बात है । ऐसी अवस्थामें यहाँ रहना भी मेरे लिये अपमान जनक है " . .. इस प्रकार विचार कर शामके समय गुटिका द्वारा
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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