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नेमिनाथ-चरित्र कलाकी शिक्षा भी देंगे और अवकाशके समय तुम्हारा मनोरंजन भी करेंगे।" . .
· वसुदेव बहुत ही नम्र और विवेकी था। उसने तुरन्त यह बात मान ली और दूसरे दिनसे सङ्गीत, नृत्य और विद्या-कलाकी चर्चा में अपना समय बिताने लगा। अपनी सरलताके कारण वह बिलकुल न समझ सका, कि उसपर यह प्रतिबन्ध क्यों लगाया गया है।
परन्तु यह रहस्य अधिक दिनोंतक छिपा न रह सका। महलके कई दास-दासियोंको महाजनोंकी शिकायतका हाल मालूम था। और उन्हींसे इस गुप्त भेदका भंडाफोड़ हो गया। बात यह हुई कि एक दिन कुब्जा नामक एक दासी कुछ गन्ध-द्रव्य लिये आ रही थी। उस समय वसुदेवने उसे रोक कर पूछा, कि-"यह गन्ध-द्रव्य किसके लिये लायी, हो ? कुन्जाने उत्तर दिया :- "हे कुमार! यह गन्धं शिवादेवीने सुमुद्रविजयके लिये भेजा है।"
'. "तब तो यह मेरे भी काम आयगा ।" यह कहते हुए. दिल्लगीके साथ वसुदेवने उसे छीन लिया। छीनते