________________
८७
-
चौथा परिच्छेद पहुंचे। राजा अपराजितने बड़ी श्रद्धाके साथ उनकी सेवामें उपस्थित हो उनका धर्मोपदेश सुना। इसके बाद उन्होंने प्रीतिमतीके उदरसे उत्पन्न पद्म नामक अपने पुत्रको राज्यभार सौंप, उन्हींक निकट दीक्षा ले ली। रानी प्रीतिमती, लघु वन्धु सूर और सोम तथा मन्त्री विमलबोधने भी उनका अनुकरण कर उसी समय दीक्षा लेली । इन सब लोगोंने अपने जीवनका शेप समय तपस्या करनेमें विताया, मृत्यु होने पर आरण देवलोकमें इन्हें इन्द्रके समान देवत्व प्राप्त हुआ और वे सब परस्पर प्रेम करते हुए स्वर्गीय सुख उपभोग करने लगे।
-
-
चौथा परिच्छेद
सातवाँ और आठवाँ भव
इस जम्बूद्वीपके भरत-क्षेत्रमें कुरु नामक एक देश था। उसके हस्तिनापुर नामक नगरमें श्रीपेण नामक एक राजा राज्य करते थे, उनकी रानीका नाम श्रीमती था।