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तीसरा परिच्छेद
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बाद इसी तरह एक रथके सवारको मारकर उन्होंने उस रथपर कब्जा कर लिया और उसपर बैठकर वे युद्ध करने लगे। इस प्रकार कभी रथपर कभी हाथीपर और कभी जमीनपर रहकर युद्ध करनेसे वे एक होने पर भी ऐसे मालूम होने लगे मानो कई राजकुमार युद्ध कर रहे हैं । उन्होंने अपने विचित्र रण-कौशलसे थोड़ी ही देर में शत्रुसेनाको इस तरह छिन्न-भिन्न कर डाला कि उसमें बेतरह भगदड़ मच गयी ।
परन्तु भृचर और खेचर राजाओंके लिये यह बड़ी लज्जाकी बात थी। एक तो राजकन्या द्वारा वे बादविवादमें पराजित हुए थे, दूसरे अब राजकुमार अपराजित, जिसे वे कोई साधारण व्यक्ति समझ रहे थे, अकेला ही 'उनका मान-भङ्ग कर रहा था। वे अपनी इस पराजयसे झल्ला उठे और बिखरी हुई सेनाको एकत्र कर फिरसे युद्ध करने लगे । इसवार राजकुमारने राजा सोमप्रभका हाथी छीन लिया और उसपर बैठकर वे शत्रुसेना का संहार करने लगे ।
इस युद्धमें भी वे न जाने कितने सैनिकोंका काम