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नेमिनाथ चरित्र मालूम होते थे, फिर भी पूर्वजन्मके स्नेहानुभावके कारण प्रीतिमती उन्हें देखते ही उनपर अनुरक्त हो गयी। इसके बाद यथाविधि वाद-विवाद आरम्भ हुआ। प्रीति‘मतीने पूर्वपक्ष लिया, परन्तु अपराजित इससे विचलित न हुए। उन्होंने उसके प्रश्नोंका उत्तर देते हुए इतनी सुन्दरतासे उसकी युक्तियोंका खण्डन किया, कि वह अवाक् बन गयी। उसने उसी क्षण अपनी पराजय स्वीकार कर राजकुमारके गलेमें जयमाल पहना दी। __परन्तु राजकुमारकी यह विजय देखकर समस्त भूचर और खेचर राजा ईर्ष्याग्निसे जल उठे। वे कहने लगे :"क्या हमारे रहते हुए यह दरिद्री इस राजकन्याको ले जायगा? हम यह कदापि न होने देंगे। इतना कह वे सब शस्त्रास्त्रसे सजित हो राजकुमार पर आक्रमण करने लगे। उनकी सेना भी इधर-उधर दौड़धूप करने लगी। राजकुमार इस युद्ध के लिये, तैयार न थे किन्तु ज्योंही राजाओंने रंग बदला, त्योंही वे एक हाथीके सवारको मारकर उसपर चढ़ बैठे और उसके हौदेमें जो शखाख रक्खे थे, उन्हींको लेकर वे युद्ध करने लगे। कुछ देर