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तीसरा परिच्छेद हमारा आतिथ्य ग्रहण करो। मैं अपने पुत्र और अपने मित्रके पुत्रमें कोई अन्तर नहीं समझता !" __ इतना कह, राजशुमारको गले लगा, हाथी पर बैठाकर कोसलराज उसे अपने महलमें लिया ले गये । मन्त्रीपुत्र भी उस शरणागत डाकूको छोड़कर राजकुमारके साथ कोशलराजके महलमें आया। वहाँपर दोनोंने कई दिनतक राजाका आतिथ्य ग्रहण किया । कोसलराजके कनकमाला नामक एक कन्या भी थी । उसकी अवस्था विवाह योग्य हो चुकी थी, इसलिये कोसलराजने इस अवसरखे लाभ उठाकर राजकुमार अपराजितसे उसका विवाह कर दिया। इससे उन सबोंके आनन्दमें सौगुनी वृद्धि हो गयी। नगरमें भी कई दिनों तक बड़ी धूमधामसे आनन्दोत्सव मनाया गया। राजकुमार अपराजित अपने मित्र मन्त्री-पुत्रके साथ दीर्घकाल तक विविध सुखोंका रसास्वादन करते रहे।
वीच वीचमें उन्होंने कई बार राजासे विदा माँगी, परन्तु स्नेहवश कोसलराजने इन्हें जानेकी आज्ञा न दी। दोनोंने जब देखा कि इस तरह कोसलराजसे विदा ग्रहण