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तोसरा परिच्छेद पड़े। परन्तुः राजकुमार भी असावधान न थे। वे भी अपनी तलवार खींचकर उन राज-कर्मचारियोंपर टूट पड़े। रांज-कर्मचारियोंमें इतना साहस कहाँ कि वे सिंह-शावकके सामने ठहर सकें। दो चार हाथ दिखाते ही सारा मैदान साफ हो गया। वे भागकर अपने स्वामी कोसल: राजके पास पहुंचे और उन्हें सारा हाल कह सुनाया। वे भी डाकूके रक्षकों पर बेहतर नाराज हुए। उन्होंने उन्हें पराजित करनेके लिये अपनी विशाल सेना रवाना की, परन्तु अपराजितने देखते-ही-देखते उसके भी दांत खट्टः कर दिये अपनी सेनाका यह पराजय-समाचार सुनकर कोसलराज आग बबूला हो उठे। इसवार वे स्वयं बहुत बड़ी सेना लेकर उन युवकोंको दण्ड देनेके लिये उनके सामने आ उपस्थित हुए । राजकुमारने इसवार कठिन मोर्चा देखकर उस. चोरको तो मन्त्री-पुत्रके सिपुर्द कर "दिया और वह अकेला ही उस समुद्र समान सेनामें घुसकर
उसका संहार करने लगा।...शीघ्रही,उसे कोसलराजकी सेनामें एक ऐसा हाथी दिखायी.. दिया, जिसपर एक महावतके-सिवा और कोई सवार न था। वह सिंहकी