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नेमिनाथ चरित्र कामदेवका विषम रूप उसकी आंखोंके सामने आ गया। इससे जलती हुए अग्निमें मानो घृतकी आहुति पड़ गयी। रैराग्यकी प्रबलताके कारण उसने अपने पुत्रको राज्य-भार सौंप कर, सुयशा केवलीके निकट जाकर दीक्षा लेली।
दीक्षा ग्रहण करनेके बाद पहले बहुत दिनोंतक सुमित्र अपने गुरुदेव के निकट शास्त्राभ्यास करता रहा। इसके बाद उनकी आज्ञा प्राप्त कर वह सर्वत्र अकेला विचरण करने लगा। कुछ दिनोंके बाद विचरण करता हुआ वह मगध देशमें जा पहुंचा। वहाँ एक नगरके वाहर उसने कायोत्सर्ग करना आरम्भ किया। इसी समय उसका सौतेला भाई पन कहींसे घूमता-घामता हुआ वहाँ आ पहुँचा। उसकी दृष्टि सुमित्र पर जा पड़ी। वह ध्यानावस्था पर्वतकी भांति स्थिर बैठा था। उसे देखते ही उसकी प्रतिहिंसा-वृत्ति जागृत हो उठी। उसने कानतक धनुष खींचकर इतने जोरसे एक वाण मारा, किसुमित्र मुनिका हृदय छिन्न-भिन्न हो गया। वे अपने मनमें कहने लगे :-"यह वेचारा अपने आत्माको