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________________ नेमिनाथ-चरित्र छुट्टी न दी। उसने क्षुधित और तृशित अवस्थामें ही उन किसान और बैलोंसे खेतोंमें एक एक फेरा और लगवाया। इससे उसने अन्तराय कर्म उपार्जन किया । मृत्युके बाद अनेक योनियोंमें भटककर वही पराशर ढंढण हुआ है। इस समय उसका वही कर्म उदय हुआ है, जिससे उसे भिक्षा नहीं मिल रही है।" भगवानके यह वचन सुनकर ढंदण मुनिको संवेग उत्पन्न हुआ और उन्होंने प्रतिज्ञा की कि आजसे मैं परलन्धि द्वारा प्राप्त आहार ग्रहण न करूंगा। इसके बाद उन्होंने अन्य लब्धिसे आहार न ग्रहण करते हुए कुछ दिन इसी तरह व्यतीत किये। ___ एकदिन सभामें बैठे हुए कृष्णने भगवानसे पूछा :"हे भगवन् ! इन मुनियोंमें ऐसा मुनि कौन है, जो दुष्कर तप कर रहा हो? ____भगवानने कहा :-"यद्यपि यह सभी मुनि दुष्कर तप करनेवाले हैं, किन्तु असह्य परिषहको सहन करनेचाले ढंढण इन सबोंमें श्रेष्ठ हैं।" इसके बाद भगवानको चन्दन कर कृष्ण आनन्द
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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