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सोलहवाँ परिच्छेद
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तरह सेनाका संहार करते हुए महामानी दुर्योधनकें निकट
जा पहुँचे ।
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दुर्योधनकी, सेना भीमसेनकी विकट मारके कारण अस्त व्यस्त हो रही थी, इसलिये उसे धैर्य देकर, दुर्योधन भीमकी, ओर झपट पड़ा । केसरीके समान क्रुद्ध हो, मेघ की भाँति गर्जना करते हुए वह दोनों वीर एक दूसरेके सामने डट गये और दीर्घकाल तक विविध शस्त्रों द्वारा
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युद्ध करते रहे । अन्तमें धू तके वैरको स्मरण कर मीम - सैनने अपनी विशाल गदा द्वारा दुर्योधनको मारकर यम- सदन भेज दिया । उसकी मृत्यु होते ही उसके सैनिक भागकर सेनापति हिरण्यनाभकी शरण में गये, और पाण्डव तथा - यादवगण सेनापति अनाधृष्टिके निकट चले गये । .
अपनी सेनाको स्थान स्थान पर पराजित होते देखकर सेनापति, हिरण्यनाभ बेतरह चिढ़ उठा और यादवोंको ललकारता हुआ सेनाके अग्रभागमें आ खड़ा हुआ । उसे देखकर राजा अभिचन्द्र ने कहा :- "हे नृपाधम ! एक नीचे पुरुषकी माँति तू चकवाद क्या करता है - क्षत्रिय वचन, शूर नहीं होते, बल्कि पराक्रमशूर होते हैं ।" 138