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पन्द्रहवाँ परिच्छेद
६२१ शाम्बने.कहा,:-"कामदेवके समान उस महा रूपवान और बलवान् प्रद्युम्नको कौन नहीं जानता? उसको देखते ही दर्शकके नेत्र शीतल हो जाते हैं। ..
प्रद्युम्नकी यह प्रशंसा सुनकर वैदर्भी रागयुक्त और उत्कंठित बन गयी। इतनेहीमें एक मदोन्मत्त हाथी अपने बन्धन तुड़ाकर गजशालासे भाग आया और नगरमें चारों ओर उत्पात मचाने लगा। किसीको वह पैरोंसे कुचल डालता, किसीको संढसे पकड़कर आकाश में फेंक देतां और किसीको इतनी तेजीसे खदेड़ता, कि उसे :भाग कर प्राण बचाना भी कठिन हो जाता। • राजा रुक्मिके यहाँ जितने महावत थे, वे सभी उसे वर्श करनेमें विफल हो गये।
अन्तमें, जब उसके उत्पातके कारण 'चारों ओर हाहाकार मच गया, तब राजा रुक्मिने घोषणा. की कि::-"जो इस हाथीको वश कर लेगा, उसे मुंहमांगा ईनाम दिया जायगा।" रुक्मिकी यह घोषणा सुनकर शाम्ब और प्रद्युम्न इसके लिये कटिबद्ध हुए और उन्होंने मधुरः संगीत द्वारा उस हाथीको स्तम्भित कर दिया।