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पन्द्रहवीं परिच्छेद
દાર
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"पुरानी शत्रुता याद आ गयी । इसलिये उसने दूतसे कहा: " है दूत ! मैं चाण्डालोंके यहाँ अपनी पुत्रीका विवाह कर सकता हूँ परन्तु कृष्णके वंशमें उसका विवाह कदापि नहीं कर सकता ।"
उसका यह उत्तर सुनकर दूत वापस लौट आया और उसने रुक्मिणीको सब हाल कह सुनाया । भाईका यहाँ अपमानजनक उत्तर सुनकर रुक्मिणीको इतना दुःखः हुआ किरातको उसे नींद भी न आयी । उसकी यह अवस्था देखकर प्रद्युम्नने पूछा :- " माता ! आज तुम इतनी उदास क्यों हो ?” रुक्मिणीने इसके उत्तरमें रुक्मि राजाका सब वृत्तान्त उसे कह सुनाया । सुनकर प्रद्युम्नने कहा :- "हे माता ! तुम चिन्ता न करो । रुक्मिमामा पर मधुर वचनोंका प्रभाव नहीं पड़ सकता । इसीलिये तो पिताजीने आपके विवाह के समय दूसरी युक्तिसे काम लिया था । मैं भी प्रतिज्ञा करता हूँ किं reden साथ ही विवाह करूँगा । यदि जरूरत हुई तो पिताजीकी तरह इस मामलेमें किसी युक्तिसे ही कार्म लूँगा।"