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नेमिनाथ-चरित्र भी दर्शनीय था । जिसने उस दृश्यको देखा, उसीके नेत्र धन्य हो गये।
प्रद्युम्नकुमारको वारंवार आलिङ्गन और चुम्बन करनेके वाद कृष्ण, और रुक्मिणी प्रद्युम्नके साथ एक रथ पर सवार हुए और बड़ी धूमके साथ नगरके प्रधान मार्गोंसे होकर उनको अपने मन्दिरमें लिवा ले गये। नगर निवासियोंने उस समय उनपर पुष्पवर्षा कर, उनके जयजय कारसे आकाश गुंजा दिया। आज रुक्मिणीकी आराधना सफल हो गयी-देवीका वचन सत्य हो गया-उसकी सूनी गोद भर गयी।
. पन्द्रहवाँ परिच्छेद
शाम्ब-चरित्र प्रद्य नके आगमनसे द्वारिका नगरीमें चारों ओर आनन्दकी हिलोरें उठने लगीं। भानुकका व्याह तो था ही, प्रधुम्नके आनेके उपलक्षमें भी कृष्णने एक महोत्सव मनानेका आयोजन किया। परन्तु इतने ही मैं दुर्योधनने ।