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चौदहवाँ परिच्छेद
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हो गये । उन्होंने नम्रतापूर्वक कहा :- "महाराज ! मुझे एक बात कहनेके लिये क्षमा कीजियेगा । मैंने. सुना है कि इस सिंहासन पर श्रीकृष्ण या उनके पुत्रके सिवा यदि कोई और बैठेगा, तो देवतागण उसे सहन न करेंगे और उसका अनिष्ट होगा ।'
माया साधने मुस्कुरा कर कहा :- "माता ! आप चिन्ता न करें । मेरे तपके प्रभावसे देवता मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते ।"
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उसका यह उत्तर सुनकर रुक्मिणी शान्त हो गयीं। थोड़ी देर बाद उन्होंने पूछा :- "महाराज ! यहाँ आपका आगमन किस उद्देश्यसे हुआ है ? मेरे योग्य जो कार्यसेवा हो, वह निःसंकोच होकर कहिये ।"
माया साधु ने कहा :- हे भद्र े ! मैं सोलह वर्षसे निराहार तप कर रहा हूँ । यहाँ तक कि मैंने माताका दूध भी नहीं पिया। आज मैं पारण करनेके लिये यहाँ आया हूँ । आप मुझे जो कुछ दे सकती हों, सहर्ष दें ।"
रुक्मिणीने कहा : "हे मुने ! आज तक मैंने