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चौदहवाँ परिच्छेद विरोध करते हुए कहा :-"हे वत्से! आगममें कहा गया है, कि साधियोंको बस्तीके वाहर आतापना लेनी उचित नहीं है।" परन्तु सुकुमारीका इन बातोंको सुनी अनसुनी कर सुभूमिभाग उद्यानमें चली गयी और सूर्यकी ओर दृष्टिकर आतापना करने लगी।
इस उद्यानमें पॉच आदमी पहलेहीसे देवदत्ता नामक एक वेश्याको साथ लेकर क्रीड़ा करने आये थे। वे सब उद्यानके एक भागमें बैठे हुए थे। एक आदमी उस वेश्याको अपनी गोदमें लिये बैठा था, दूसरा छत्र धारण कर उसके शिर पर छाया कर रहा था, तीसरा एक वस्त्रसे उसे हवा कर रहा था, चौथा उसके केश सँवार रहा था और पॉचवाँ उसके चरणोंपर हाथ फेरे रहा था। आतापना करते करते सुकुमारीकाकी दृष्टि उस वेश्या पर जा पड़ी। उसकी भोग-अभिलाष पूर्ण न हुई थी, इसलिये उसे देखते ही उसका चित्त चञ्चल हो उठा। उसने मन-ही-मन कामना की कि इस तपके प्रभावसे इस रमणीकी भाँति मुझे भी पाँच पति प्राप्त