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नेमिनाथ चरित्र
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इस यातनासे व्याकुल हो, वह भी उस ऐश्वर्यको ठुकरा कर वहाँसे भाग खड़ा हुआ । इस घटनासे सुकुमारीका और भी दुःखित हो गयी । उसके पिताने यह सब समाचार सुना तो उन्होंने कहा :- "हे वत्से ! यह तेरे पूर्व कमौका उदय है, और कुछ नहीं । तू अब धैर्य धारण कर और दानादिक सत्कर्म में अपना समय बिताया कर !"
पिताके इस आदेशानुसार सुकुमारीका धर्म - ध्यानमें तत्पर हो, अपना समय व्यतीत करने लगी । एकदिन उसके यहाँ गोपालिका आदि साध्वियोंका आगमन हुआ । सुकुमारीकाने शुद्ध अन्नपानादिक द्वारा उनका सत्कारकर धर्मोपदेश सुना और ज्ञान उत्पन्न होने पर उन्हींके निकट दीक्षा ले ली। इसके बाद वह छठ और अट्ठम आदि तप करती हुई गोपालिका प्रभृति साध्विओंके साथ विचरण करने लगी ।,
एकवार सुभूमिभाग उद्यानमें रविमण्डलको देख कर उसने साध्वियों से कहा :- "मेरी इच्छा होती है, कि मैं यहाँ आतापना लूँ ।" साध्वियोंने इसका