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तेरहवाँ परिच्छेद उन्होंने रुक्मिणीके निकट एक पृथक् महलमें रुक्मिणीकी ही भाँति जाम्बवतीके रहनेकी व्यवस्था कर दी। जाम्बचतीका स्वभाव बहुत ही मिलनसार था, इसलिये उसने शीघ्र ही रुक्मिणीसे मित्रता - कर ली। इससे उसके दिन भी आनन्दमें कटने लगे। ___ एकबार सिंहलद्वीपके राजा लक्ष्णरोमने कृष्णकी आज्ञा माननेसे इन्कार कर दिया, इसलिये कृष्णने उसे समझानेके लिये उसके पास एक दूत भेजा। कुछ दिनोंके बाद उस दूतने वहाँसे वापस आकर कृष्णसे कहा :- "हे स्वामिन् ! श्लक्ष्णरोम आपकी आज्ञा मानने को तैयार नहीं है। परन्तु उसे नीचा दिखाने की एक और युक्ति मैंने खोज निकाली है। उसके लक्ष्मणा नामक एक कन्या है, जो बहुत ही सुन्दर है और सर्वथा आपकी रानी वनने योग्य है। वह इस समय दुमसेन नामक सेनापतिकी संरक्षतामें सागर-स्नान करनेके लिये यहाँ आयी हुई है। वह सात दिन यहाँ रहेगी। यदि आप चाहें तो इस बीच उसका हरण कर सकते हैं। सम्भव है कि इससे श्लक्ष्णरोम भी आपकी अधीनता स्वीकार कर ले।"