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થર
नेमिनाथ-चरित्र लिये कृष्णसे अत्यन्त आग्रह किया। इसपर कृष्णने कहा : ---'अच्छा, कल तुम्हारी यह इच्छा पूर्ण कर दूँगा।" - सत्यभामासे यह वादा करनेके बाद कृष्णको एक दिल्लगी सूझी। श्रीप्रासादमें लक्ष्मीकी एक सुन्दर प्रतिमा थी। उन्होंने सजित करानेके बहाने, चतुर कारीगरों द्वारा उस प्रतिमाको वहाँसे हटवा दिया और उस स्थानमें उस प्रतिमाकी ही भॉति रुक्मिणीको बैठा दिया। इसके बाद उन्होंने रुक्मिणीसे कहा :--"सत्यभामाके साथ अन्य रानियाँ जिस समय तुम्हें देखने आयें, उस समय तुम इस तरह स्थिर हो जाना, जिससे वे यह न समझ सकें कि तुम लक्ष्मीकी मूर्ति नहीं हो !"
' इस प्रकार व्यवस्था करनेके बाद कृष्णने सत्यभामा आदिसे कह दिया कि:-"तुम श्रीप्रासादमें जाकर रुक्मिणीको सहर्ष देख सकती हो। कृष्णका यह वचन सुनकर वे सब रुक्मिणीको देखने गयीं। श्रीप्रासादमें प्रवेश करने पर पहले ही श्रीमन्दिर पड़ता था। सत्यभामाने सोचा कि चलो पहले लक्ष्मीजीके दर्शन कर लें.। यह सोच कर वे सब लक्ष्मीके मन्दिरमें गयीं और