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नेमिनाथ-चरित्र
चित्रको लेकर राजकुमारी अपनी सखियोंके साथ अपने वासस्थानको लौट आयी । परन्तु उसका मन अव उसके अधिकारमें न था। जिस प्रकार हंसिनीको मरुभूमिमें सन्तोष नहीं होता, उसी प्रकार उसकी तवियत अब राजमहलमें न लगती थी। खाना, पीना और सोना उसके लिये हराम हो गया था। सारी रात बिछौनेमें करवटें बदलते ही बीत जाती थीं। दिनको, जब देखो तब, वह गाल पर हाथ रक्खे राजकुमार धनका ही ध्यान किया करती थी। इस व्यग्रताके कारण उसकी स्मरण शक्ति पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता था, फलतः वह जो कुछ कहती या करती थी, वह तुरन्त भूल जाती थी। जिस प्रकार योगिनी अपने इष्टदेवका और निर्धन मनुष्य धनका ही चिन्तन किया करता है, उसी प्रकार वह सदा राजकुमारका ही चिन्तन किया करती थी। उसके चेहरेकी प्रसन्नता मानो सदाके लिये लोप हो गयी थी और उसका स्थान उदासीनताने अधिकृत कर लिया था। उसका शरीर धीरे-धीरे-कृश हो गया और रूप-लावण्यमें भी बहुत कुछ कमी आ गयी