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बारहवाँ परिच्छेद
४७१ कृष्णको गलेसे लगा लिया। इसके बाद वे दोनों स्थ पर बैठकर पुनः आगे बढ़े और क्रमशः यमुना नदी पारकर निर्विन रूपसे मथुरा जा पहुंचे। ___ मथुरा पहुंचनेके बाद दोनों जन यथा समय कंसकी राज-सभामें गये। उस समय भी वहाँपर अनेक राजे धनुष चढ़ानेके लिये उपस्थित थे। धनुषके पास ही साक्षात् लक्ष्मीके समान कमलनयनी सत्यभामा वैठी हुई थी। जो उसे देखता था, वही उस पर मुग्ध हो जाता था। सत्यभामाने भी कृष्णको देखा। देखते ही वह उनपर आशिक हो गयी। उसने मन-ही-मन अपना तनमन उनके चरणोंमें समर्पण कर दिया, साथही उसने भगवानसे प्रार्थना की कि :-'हे भगवन् ! मैं कृष्णको अपना हृदय-हार बनाना चाहती हूँ। तुम उन्हें ऐसी शक्ति दो कि वे धनुष चढ़ानेमें सफलता प्राप्त कर सके।" ___ इधर अनावृष्टिने धनुष चढ़ानेकी तैयार की, परन्तु ज्योंही वह धनुषको उठाने गया, त्योंही उसका पैर वेतरह फिसल गया और वह ऊँटकी तरह मुँहके बल जमीन पर गिर पड़ा। इससे अनाधृष्टिका हार टूट गया,