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दसवाँ परिच्छेद
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हालत में नन्द, यशोदा और समस्त गोपगोपियाँ उनसे प्रसन्न ही रहते थे ! उनकी बाललीलामें, उनके क्रीड़ा कौतुकों में कोई किसी प्रकारकी बाधा न देते थे, बल्कि उनके प्रेमके कारण, सब लोग मन्त्र-मुग्धकी भाँति उनके पीछे लगे रहते थे ।
धीरे धीरे कृष्णके अतुल पराक्रम — शकुनि और पूतनाको मारने, शकट तोड़ने और अर्जुन वृक्षोंको उखाढ़ डालने की बात चारों ओर फैल गयी । जब यह बातें वसुदेवने सुनी, तव उन्हें बड़ी चिन्ता हो गयी। वे अपने मनमें कहने लगे :- "मैं अपने पुत्रको छिपानेके लिये नन्दके यहाँ छोड़ आया था, 'परन्तु अब वह अपने बलसे प्रकट होता जा रहा है । यदि कंसको उसपर सन्देह हो जायगा, तो वह उसका अमंगल किये बिना न रहेगा। इसके लिये पहलेहीसे सावधान हो जाना उचित है । यदि कृष्ण की रक्षाके लिये मैं अपने किसी पुत्रको उसके पास भेज दूं तो बहुत ही अच्छा हो सकता है । परन्तु अक्रूरादि पुत्रोंको तो क्रूर मति कंस जानता है, इसलिये उन्हें भेजना