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दसवाँ परिच्छेद"
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कहने लगे - " मालूम होता हैं कि आज श्रीकृष्णकी खैर नहीं।" उन्होंने उसी समय उनकी खोज की। वे कहीं खेल रहे थे । उनको सकुशल देखकर नन्दके मृत शरीरमें मानो फिरसे प्राण आ गये । पूछताछ करने पर उन्हें ग्वाल-बालोंने बतलाया कि "कृष्णने ही उस गाड़ीको तोड़ डाला था और उन्होंने उन राक्षसियोंको मारकर अपनी प्राण रक्षा की थी !"
नन्दने बड़े आश्चर्यके साथ यह समाचार सुना । उन्होंने श्रीकृष्णका समूचा शरीर टटोल कर देखा कि उन्हें कहीं चोट तो नहीं आयी है । इसी समय वहाँ यशोदा आ पहुँची । श्रीकृष्णको अकेला छोड़नेके लिये नन्दने उनको सख्त उलाहना देते हुए कहा :"प्यारी ! तुमने आज कृष्णको अकेला क्यों छोड़ दिया ? तुम्हारे ऐसे कामका परिणाम किसी समय बहुत ही भयानक हो सकता है। देखो, आज ही भगवानने इसकी रक्षा न की होती तो न जाने क्या हो गया होता ! चाहे जितना नुकसान हो रहा हो, घीके घड़े
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