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दसवाँ परिच्छेद
४५६ पहुँचे। देवक राजाने उनका बड़ा सत्कार किया और उच्च आसन पर बैठाकर उनके आगमनका कारण पूछा। इसपर कंसने कहा :-"राजन् ! वसुदेव मेरे स्वामी
और मित्र हैं। मेरी इच्छा है कि इनसे आप देवकीका च्याह कर दें। इसके लिये इनसे बढ़कर दूसरा पति और कौन हो सकता है ?"
देवकने मुस्कुरा कर कहा :-"आज तक मैंने कन्याके यहाँ इस तरह पतिको जाते नहीं देखा। आपने यह विरुद्धाचरण क्यों किया? खैर, देवकी या उसकी मातासे पूछे बिना इस सम्बन्धमें मैं कोई बात नहीं कह सकता।"
देवकका यह उत्तर सुनकर कंस और वसुदेव अपने तम्घूमें लौट आये। पश्चात् देवक राजसभासे उठकर अपने अन्तःपुरमें गया। वहाँ उसने रानीसे कहा :"आज कंसने देवकीका ब्याह वसुदेवसे कर देनेके लिये मुझे प्रार्थना की थी किन्तु मैंने इन्कार कर दिया है। देवकी मुझे पाणसेभी बढ़कर प्यारी है। यदि मैं इसका ब्याह अभीसे कर दूंगा, तो मेरे लिये इसका वियोग असह्य हो जायगा।"