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पाठवा परिछेद उन्होंने अपनी पुत्रीके आगमनके उपलक्षमें एक अट्ठाई महोत्सव किया, जो सात दिन तक जारी रहा। इन दिनोंमें उन्होंने देव पूजा और गुरु पूजा विशेष रूपसे की। ___ समय समय पर राजा भीमस्थ भी दमयन्तीको बड़े प्रेमसे अपने पास बुलाकर उसे सन्त्वना दिया करते थे। एकदिन उन्होंने कहा :-हे पुत्री ! मैं एक ऐसी युक्ति सोच रहा हूँ, जिससे नलकुमार जहाँ होंगे वहाँसे अपने आप यहाँ चले आयेंगे। मेरी यह धारणा है, कि अब तुम्हें अधिक समय तक यह दुःखमय जीवन न बिताना होगा।" ..
पिताकी इन सान्त्वनाओंसे दमयन्तीको खूब शान्ति मिलती थी और वह अपने दिन बड़े ही आनन्दमें बिताती थी। - इस तरह कोशला नगरी- छोड़ने के कई वर्ष बाद दमयन्ती तो किसी तरह ठिकाने लग गयी, किन्तु नलको सुदिन देखनेका समय अभी न आया था। मैं दमयन्तीको सोती हुई छोडकर वर्षों तक जंगलमें भटकते रहे। एकबार उन्हें एक स्थानसे काजल समान काला