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आठवाँ परिच्छेद;
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स्थानमें पहुँच जाऊँगा और थोड़े दिन मौज करूँगा, किन्तु दुर्भाग्यवश मार्गमें डाकुओंने मुझे लूट लिया | इसलिये मैं फिर जैसाका तैसा हो गया ।
. पश्चात् मैं घूमता घामता यहाँ आ पहुँचा । यहाँपर राजा ऋतुपर्णने मुझे नोकर रख लिया। इससे मैं बहुत ही प्रसन्न हुआ, खासकर इस विचारसे कि अब मुझे फिर माल मारनेका मौका मिलेगा । चोरका ध्यान सदा, चोरीमें ही रहता है, इसलिये किसी भी कार्य से यदि मैं राजमन्दिरमें इधर उधर जाता, तो वहाँ रक्खी हुईचीजों पर सबसे पहले नजर डालता । एकदिन मैंने चन्द्रवती देवीकी रत्नपिटारी देख ली । उसे देखते ही मेरा चित्त चलायमान हो गया और मैं उसी क्षण उसे चुरा लाया 1
परन्तु चोरकी हिम्मत कितनी ? मैं ज्योंही डरतेडरते वहाँसे भागने की तैयारी करने लगा, त्योंही राज| महलकें चतुर पहरेदारोंकों मुझपर सन्देह हो गया और । उन्होंने मुझे गिरफ्तार कर लिया । तलाशी लेने पर मेरेपाससे जब वह रतपिटारी निकलीं, तब उन्होंने मुझे.
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