________________
मोठवॉपिरिच्छेद कर दीन और दुःखियोंको दिान दिया करती थी। यह देख, दमयन्तीने रानीसे कहा, माताजी यदि आप कहें तो दानशालामें बैठकर मैं भी दीन दुखियोंको दान दिया करारा सम्भव है कि मेरे पतिदेव कभी 'घूमतेयामतें, वहाँ आजायें या वहाँ आनेवाले मुसाफिरोंसे. किसी प्रकार उनका पता मिल जाय ! . .
रानीने दमयन्तीकी यह प्रार्थना सहर्ष स्वीकार कर ली, अत: दूसरे ही दिनसे दमयन्ती वहाँ बैठकर दान देने लेंगी। वहाँपराजो-जो याचक या मुसाफिर आता,. उसको नलका रूंप आदि वतंला-बतलाकर दमयन्ती उससे उनका पता पूछती। धीरे-धीरे यही उसकी दिनचर्या हो गयी। इस कार्यमें उसे आनन्द भी आता था और उसका दिन भी आसानीसे कट जाता था। ',
एकदिन दमयन्ती दानशालामें बैठी हुई थी। इतनेही में राजकर्मचारी एक वन्दीको लेकर उधरसे आ निकले। वे उसे वधस्थानकी ओर लिये जा रहे थे । दमयन्तीने उनाराज कर्मचारियोंसे उसके अपराधके सम्बन्धमें पूछताछ की तो उन्होंने घेतलाया कि यह एक चोर है।