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आठवाँ परिच्छेद
तापसोको सम्यक् ज्ञान प्राप्त हुआ, इसलिये उस नगरका नाम तापसपुर रक्खा।
एकदिन दमयन्तीको रात्रिके समय उस पर्वतके शिखर पर बड़ा प्रकाश दिखायी दिया। साथ ही उसने देखा कि वहाँपर बड़ी धूम मची हुई है और सुर, असुर तथा विद्याधर इधर उधर आ जा रहे हैं। उनके जय जय कारसे समस्त तापस तथा वसन्त सार्थवाहक आदिकी निद्रा भंग हो गयी। पर्वत पर क्या हो रहा है, यह 'जाननेकी सवको बड़ी इच्छा हुई, इसलिये सब लोग सती दमयन्तीको आगे करके उस पर्वत पर चढ़ गये। वहाँ पहुँचने पर उन्होंने देखा कि सिंहकेसरी नामक साधुको - केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है और देवतागण उसीका उत्सव ‘मना रहे हैं। . .दमयन्ती तथा उसके समस्त संगी यह देख कर बहुत ही प्रसन्न हुए। दमयन्ती मुनिराजको वन्दन कर उनके
चरणोंके निकट बैठ गयी। पश्चात् उसके संगी भी मुनि-राजको वन्दन कर यथोचित स्थानमें बैठ गये । इसी समय उस साधुके गुरु यशोभद्रसरि वहाँ आ पहुँचें.।, उन्हें यह