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नेमिनाथ-चरित्र
इसके बाद उस वसन्त सार्थवाहकने पूछा : है देवि ! आप यह किस देवताका पूजन कर रही हैं।"
दमयन्तीने कहा :- "यह तीनों लोकके नाव अरिहन्त देवका बिम्ब है । यह परमेश्वर हैं और मनवाञ्छित देनेवाले हैं । इन्हींकी आराधनाके कारण मैं यहाॅ निर्भय होकर रहती हूँ । इनके प्रभावसे मुझे व्याघ्रादिक्र हिंसक प्राणी भी हानि नहीं पहुँचा सकते ।"
इस प्रकार अरिहन्त भगवानकी महिमाका वर्णन कर दमयन्तीने सार्थवाहकको अहिंसामूलक जैनधर्म कह सुनाया! उसे सुनकर उसने जैनधर्म स्वीकार कर लिया। उन तापसोंने भी उसके उपदेशसे सन्देह, रहित जिनधर्म स्वीकार किया और अपने तापस धर्मको त्याग दिया ।.
इसके बाद वसन्त सार्थवाहकने उसी जगह एक. नंगर बसाया और वहाँपर शान्तिनाथ भगवानका एक चैत्य बनवाकर उसमें अपना सारा धन लगाया। इसके बाद वह सार्थवाहक समस्त तापस और उस नगरके निवासी' लोग आर्हत धर्मकी साधना करते हुए अपना - समय व्यतीत करने लगे । वहाँपर रहनेवाले पाँच सौ
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