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छठा परिच्छेद थे। इसी वंशमें रावण और विभीपण भी उत्पन्न हुए। मेरे पिता विद्युद्वेग विभीषणके ही वंशज हैं । इसलिये ये सब शस्त्र उसी समयसे हमलोग अपने काममें लाते चले आ रहे हैं। अब मैं इन्हें आपको अर्पण करता हूँ। आशा है. यह आपको वडा काम देंगे। हमारे जैसे मन्द भाग्योंके लिये ये वेकार हैं।"
वसुदेवने वे सब शस्न सहर्ष स्वीकार कर लिये। किन्तु सिद्ध किये बिना वे सब व्यर्थ थे, इसलिये वसुदेवने साधना कर शीघ्र ही उन्हें सिद्ध कर लिया।
उधर त्रिशिखरको ज्योंही यह मलूम हुआ, कि मदनवेगाका विवाह एक भूचर ( मनुष्य ) से कर दिया गया है, त्योंही वह आग बबूला हो अमृतधारा नगर पर आक्रमण करनेके लिये आ धमका। इधर वसुदेव तो उससे युद्ध करनेके लिये पहलेसे ही तैयार थे, इसलिये तुण्ड विद्याधरके दिये हुए मायामय सुवर्ण रथ पर बैठ, दधिमुखादिकको साथ ले, वे उसके सामने जा डटे और चीरतापूर्वक उससे युद्ध करने लगे। थोड़ी ही देरमें उन्होंने इन्द्रास्त्र द्वारा उसका शिर धड़से अलग कर