________________
.
छठा परिच्छेद
१९३
विद्युद्वेगकी, मदनवेगा नामक पुत्री वहाँपर आ पहुँची । वह वसुदेवको देखतेही उनपर अनुरक्त हो गयी और उन्हें वैताढ्य पर्वत पर उठा ले गयी । वहाँपर वह उन्हें पुष्पशयन नामक उद्यानमें छोड़कर स्वयं अमृतधारा नामक नगर में चली गयी। दूसरे दिन सुबह दधिवेग, दण्डवेग और चण्डवेग ( जिसने वसुदेवको आकाशगामिनी विद्या दी थी) नामक उसके तीनों भाई वसुदेवके पास आये और उन्हें सम्मान पूर्वक अपने नगरमें ले जाकर मदनवेगाके साथ उनका विवाह कर दिया । - इसके बाद वसुदेव बहुत दिनों तक उसके साथ मौज करते रहे। इसी बीच में वसुदेवको प्रसन्न कर मदनवेगाने एक वर मांगा जो उन्होंने उसे देना स्वीकार कर लिया ।
एकदिन दधिमुखने वसुदेवके पास आकर कहा :“दिवस्तिलक नामक नगर में त्रिशिखर नामक राजा राज्य करता है । उसके सूर्पक नामक एक पुत्र है । उसके साथ व्याह करनेके लिये उसने हमारे पिताके निकट मदनवेगाकी मॅगनी की, परन्तु हमारे पिताजीने इसके लिये इन्कार कर दिया। ऐसा करनेका कारण यह
१३