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दान प्रदान किया है। श्रात्मीय वजन भाई-बन्धुओं को भी आपने बहुतसी सहायता रुपयों से प्रदान की है। कठगोला बगीचा तथा मन्दिरके मरम्मत कार्य में २००००) बीस हजार रू० लगाये हैं । इसके अतिरिक्त आपके पिताजीका निर्माण कराया हुआ श्रीविमल नाथजी भगवानका विशाल मन्दिर है । उसके अगल-बगल दक्षिण और पश्चिम दिशामें जमीन पड़ी थी, उसे १२,५००) साढ़े बारह हजार रूपयों में खरीदकर उस जगहमें नयी धर्मशाला और आयंबिल भवन बनवा दिया है। उसमें लगभग ६०,०० । ६५,००० ) साठ-पैंसठ हजार रूपये लगाये हैं। आयंबिल मत्रनमें नियमित रूपसे साधु, साध्वी, श्रावक-श्राविकाएं निरन्तर आयंबिल, अक्षयनिधी, एवं वर्धमान तपस्या घ्यादिका लाभ उठाते रहते हैं ।
इस कार्य में मुख्यतः आपकी धर्मपत्नी रानी धन्नाकुमारी देवी अप्रगय रहा करती हैं। वे स्वयं बड़ी ही आदर्श तपस्विनी हैं। निरन्तर एकासन, वियासन, उपवास आयंबिल, निवी, श्रोली आदिकी तपस्यायें करती रहती हैं । एवं सामायिक प्रतिक्रमण, पौषध आदि क्रियाएँ भी निरन्तर करती रहती हैं। कभी-कभी तो आप चौसठ प्रहरी पौषधन्त्रत ग्रहण कर साध्वीकी भाँति उम्र तपस्या करती हैं । सत्तर वर्ष की आयु होते हुए भी इतनी उम्र तपस्या करना, यह एक चड़े ही महत्वपूर्ण गौरवका विषय है । और यही कारण है कि आयंबिल भवन में आपकी आदर्श प्रवृत्ति देखकर अन्यान्य श्राविका वर्ग भी आपके साथ तपस्यायें करती रहती हैं। इसके फल स्वरूप सौ-सौके लगभग छोटे-मोटे तपस्वी हो जाया करते हैं। इधर कुछ समय से तो आपने अपना जीवन साध्वीकी भाँति बना डाला
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