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नेमिनाथ चरित्र नीचे लटका दिया। रस मिलतेही मैने रस्सी हिला दी
और उस त्रिदण्डीने मुझे ऊपर खींचना आरम्भ कर दिया। अब मैं उस कूपके मुखके पास आ पहुंचा, तव त्रिदण्डीने खींचना बन्द कर, मुझसे पहले वह रस दे देनेको कहा। मैंने कहा :- भगवन् ! पहले मुझे बाहर निकालिये, रस मचियाके नीचे बँधा हुआ है।"
त्रिदण्डीने मेरी इस बात पर ध्यान न दिया। वह वारंवार रस दे देनेका आग्रह करता था। इससे मैं समझ गया कि वह केवल रसका भूखा है। रस मिल जाने पर वह मुझे धोखा देकर इसी कुएंमें छोड़ देगा और आप यहाँसे चलता बनेगा। निदान जब मैंने उसे रसका कमण्डल न दिया, तो उसले वह रस्सी छोड़ दी और मैं उस मचिया तथा रस्सीके साथ उस कुऍमें जा गिरा।
परन्तु आनन्दकी बात इतनी ही थी कि, मैं उस रसमें न गिरकर उसके चारोंओर बंधी हुई कुऍकी वेदिका पर गिरा था। कूप स्थित मेरे उस अकारण बन्धुने मेरी यह अवस्था देख, मुझे सान्त्वना देते हुए कहा :