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नेमिनाथ-चरित्र पुत्र हूँ। मेरा नाम अमितगति है। एकदिन धूमशिख
और गौरमुण्ड नामक दो मित्रोंकेसाथ क्रीड़ा करता हुआ मैं हिमन्त पर्वत पर जा पहुंचा। वहाँ पर मैंने अपने मामा हिरण्यरोम तपस्वीकी सुकुमालिका नामक रमणीय कुमारी को देखा। उसे देखकर मैं उस पर मोहित हो गया और चुपचाप अपने वासस्थानको लौट आया। परन्तु मेरी हालत उसी दिनसे खराब होने लगी। न मुझे भोजन अच्छा लगता था, न रातमें नींद ही आती थी। मेरे एक मित्र द्वारा मेरे पिताको यह हाल मालूम होने पर उन्होंने उस कुमारिकाको बुलाकर उससे मेरा व्याह कर दिया। फलतः मैं उसके साथ आनन्दपूर्वक अपने दिन व्यतीत करने लगा।" .
. कुछ दिनोंके बाद मुझे मालूम हुआ कि मेरा मित्र धूमशिख मेरी स्त्रीको कुदृष्टि से देखता है। और भी कई बातोंसे मुझे विश्वास हो गया कि वह उस पर आसक्त है। किन्तु इसके लिये मैंने न तो उसे उलाहनाही दिया, न मैंने उसका अपने यहाँ आना-जाना ही बन्द किया। । मेरी इस सजनताका फल आज मुझे यह मिला, कि वह ।