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भाषानुवादसहिता
स्यान्मतं व्यतीतानन्तजन्मोपात्तानां कर्मणाम्art नित्येन तेषां चेत्प्रायश्चित्तैर्यथैनसः । निष्फलत्वान्न नित्येन काम्यादेविनिवारणम् ॥ ८२ ॥
यदि कहो कि व्यतीत अनेक जन्मोंमें किये हुए कर्मों का इस जन्म के नित्यकर्मानुष्ठानसे, प्रायश्चित्तसे पापनिवृत्ति के समान, नाश हो जाएगा ? तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि तुम्हारे मत में नित्यकर्म निष्फल हैं, इसलिए काम्य कर्मों की निवृत्ति करना उनका फल नहीं हो सकता ॥ ८२ ॥
प्रमाणाभावाच्च, कथम् ? -
पापापनुत्तये वाक्यात्प्रायश्चित्तं यथा तथा ।
ते काम्यानार्थं नित्यं कर्म न वाक्यतः || ८३ ॥
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और नित्यकर्म के अनुष्ठानसे काम्यकमों की निवृत्ति होती है, इसमें कोई प्रमाण भी नहीं है, क्योंकि जैसे प्रायश्चित्तसे पाप निवृत्त होता है, इस विषय में शास्त्र के वाक्य प्रमाण हैं उसी प्रकार नित्यक्रम के अनुष्ठान काम्यकमों की निवृत्ति होती है, इस विषय में कोई वाक्य प्रमाण नहीं है ॥ ८३ ॥
अथापि स्यात्यैरेव काम्यानां पूर्वजन्मोपचितानां क्षयो भविष्यतीति । तन्न । यतः
यदि यह कहो कि वर्तमान जन्म में किये हुए काम्य कर्मों से ही पूर्वजन्ममें किये काम्य कमका क्षय हो जायगा, तो यह भी युक्त नहीं | क्योंकि
पाप्मनां पाप्मभिर्नास्ति यथैवेह निराक्रिया ।
काम्यैरपि तथैवाऽस्तु काम्यानामविरोधतः ॥ ८४ ॥
जैसे पापोंसे पापों की निवृत्ति नहीं हो सकती, इसी प्रकार विरोध न होने के कारण काय कमसे काम्यकर्मों की निवृत्ति भी नहीं हो सकती || ८४ ॥
एवं तावन्मुक्तः क्रियाभिः सिद्धत्वादिति निराकृतम् । अथाss
रमज्ञानस्य सद्भावे प्रमाणाऽसम्भव उक्तस्तत्परिहारायाऽऽह—
इस प्रकार "मुक्ति क्रियाओं से ही सिद्ध है, उसके लिए ज्ञानको क्या श्रावश्यकता है ?” इस पक्षका निराकरण किया गया। अब ग्रात्मज्ञान के अस्तित्वमें पूर्वपक्षीने जो प्रमाणों का अभाव बताया था, उसका प्रतिकार करनेके लिए कहते हैं
श्रुतयः स्मृतिभिः साकमानन्त्यात्कामिनामिह । विदधत्युरुयत्नेन कर्मातो भूरिकामदम् ॥ ८५ ॥