________________
विषय
श्लोक त्वंपदार्थ तत्पदार्थ कैसे हो सकता है, इसका समाधान ... तत् और त्वं पदकी अखण्ड-एकरसार्थनिष्ठता ...
त्वंपद में प्रतीत अहंकार और तत्पद में प्रतीत परोक्षताकी हेयता
तदर्थ त्वमर्थसे अभिन्न होकर अविद्यासे उत्पन्न द्वितीयताका निराकरण कैसे करता है, ऐसी शङ्का और समाधान
तत्-त्वंपद के लक्षणा द्वारा अखंड-आत्माके बोधनमें प्रत्यक्षादिका अविरोध ... ... ... ...
'तत्त्वमसि' आदि वाक्य उपासनापरक नहीं हैं दृष्टान्त द्वारा वाक्य और प्रत्यक्षका परस्सर अविरोध शब्दादि प्रमाणोंका स्वतःप्रामाण्य उपासना और कर्मफल स्थायी नहीं है ... अहंवृत्तिसे आत्मा लक्षित होता है शब्द गौणीवृत्तिसे आत्माका बोध कराता है, मुख्यसे नहीं १०२-१०४
शब्द अपने अर्थसे सम्बन्धित हुए बिना कैसे उसका बोध करा सकता है इसमें दृष्टान्त- ... ... ... १०५
___ आत्मा अज्ञान और ज्ञानका आश्रय होनेसे विकारी नहीं है
... ... ... ... १०७ श्रुति और आचार्य द्वारा आत्मबोध होनेमें शङ्का-समाधान आत्मामें अज्ञान स्थिर नहीं है
११० अविद्याकी धृष्टता . ... ...
आत्मामें किसी प्रकार भी अविद्याकी संभावना नहीं है।
( अन्वय व्यतिरेक रूप ) अनुमानसे युक्त वाक्य द्वारा अविद्याकी निवृत्ति ...
११३ अज्ञाननिद्रामें प्रसुप्त जीवको श्रुति ही जगा सकती है ... वाक्यसे अन्य प्रमाण द्वारा आत्मज्ञान असंभव वेदन्तोंके उपासनापरक होनेमें शङ्कासमाधान
१०८
११५
११७
....
१२३